RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में आयोजित एक किताब विमोचन कार्यक्रम में कहा कि “जब किसी नेता को 75 वर्ष की आयु पूरी हो जाए, तो उसे पीछे हटकर दूसरों को नेतृत्व की जगह देना चाहिए।” उन्होंने यह बात मराठी RSS विचारक मोरोपंत पिंगले के उदाहरण के ज़रिए कही ।
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इस बयान का राजनैतिक महत्व इसलिए बढ़ गया क्योंकि दोनों—भागवत (11 सितंबर 1950) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (17 सितंबर 1950)—इस सितंबर में 75 वर्ष पूरे कर लेंगे ।

RSS मोहन भागवत के बयान पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
- कांग्रेस: जयराम रमेश ने कहा कि यह “एक ही तीर से दो निशाने” वाली बात थी—भागवत और मोदी दोनों की उम्र अभी 75 के करीब है। उन्होंने कहा कि “पार्टी दोनो झोला लेकर एक-दूसरे को गाइड करें” ।
- शिवसेना (UBT): संजय राउत ने टिप्पणी की कि भाजपा ने पहले सीनियर नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और जसवंत सिंह को 75 की उम्र पार करने पर पद से हटाया था। सवाल यह उठता है कि मोदी क्या स्वयं इस सिद्धांत का पालन करेंगे?
BJP और RSS की सफाई
- RSS ने स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी सिर्फ मोरोपंत पिंगले तक सीमित थी और किसी अन्य नेता को लक्षित नहीं किया गया ।
- अमित शाह ने दोहराया कि भाजपा सिद्धांत में कोई उम्र‑आधारित रिटायरमेंट नियम नहीं अपनाती, और मोदी 2029 तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहेंगे ।
क्यों यह चर्चा महत्वपूर्ण है?
- उम्र-संबंधित सिद्धांत – BJP और RSS ने अभी तक कोई अधिकारिक 75 की उम्र सीमा तय नहीं की है।
- आगामी चुनाव – 2025‑26 में विधानसभा चुनाव और 2029 में लोकसभा चुनाव की रणनीतियों को ले कर यह बहस महत्वपूर्ण है।
- ** पार्टी व्यवहार** – राहुलमान संभावना हैं कि भाजपा नेतृत्व में बदलाव, उत्तराधिकारी मॉडल और शीर्ष नेतृत्व की योजना पर इसे गहरा असर पड़े।
निष्कर्ष
- भागवत की टिपण्णी एक आदर्श/सामान्य सलाह हो सकती है, लेकिन राजनैतिक संदर्भ इसकी पैठ बनाता है।
- विपक्ष इसे मोदी के सामने इशारा मान रहा है, जबकि भाजपा इसे अन्य आदरणीय नेता के संदर्भ के रूप में देख रही है।
- आने वाले महीनों में नेतृत्व परिवर्तन, उत्तराधिकारी संभावनाएं और चुनाव रणनीति की रूपरेखा इस बहस से प्रभावित हो सकती है।