- आरोपी: भारतीय खाद्य निगम (FCI) का एक कैशियर
- कुल वैध वेतन: ₹40 लाख (6 वर्षों में)
- निवेश: ₹19 करोड़ से अधिक शेयर बाजार में
- केस दर्ज: सीबीआई (CBI) ने भ्रष्टाचार और अवैध संपत्ति अर्जित करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की
क्या है पूरा मामला?
CBI ने हाल ही में एक एफआईआर दर्ज की है जिसमें भारतीय खाद्य निगम (FCI) के एक कैशियर पर यह आरोप है कि उसने अपनी सरकारी नौकरी में 6 साल की अवधि के दौरान ₹40 लाख की वैध सैलरी कमाई, लेकिन इस दौरान उसने शेयर बाजार में ₹19 करोड़ से भी अधिक का निवेश कर डाला। यह राशि उसके ज्ञात वैध स्रोतों से कहीं अधिक है, जिससे उस पर अवैध तरीके से आय अर्जित करने और भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगा है।

आरोपी कौन है?
सीबीआई ने नागालैंड में भारतीय खाद्य निगम के एक कैशियर द्वारा कथित तौर पर 19 करोड़ रुपये का निवेश पाया है, जिसकी पिछले छह वर्षों में वेतन से कुल कमाई 40 लाख रुपये है, अधिकारियों ने शुक्रवार को कहा।
केंद्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2019 से जून 2025 के बीच कथित रूप से 18.99 करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने का मामला दर्ज किया है, जो उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से 1,797.73 प्रतिशत अधिक है।
एफसीआई के दीमापुर मंडल कार्यालय में सहायक ग्रेड-I और कैशियर के पद पर तैनात शोहे ने कथित तौर पर छह साल की अवधि में ₹39.91 लाख वेतन अर्जित किया। अब उन्हें निलंबित कर दिया गया है। शोहे की पत्नी, जिनसे उन्होंने 2019 में विवाह किया था, की उक्त अवधि में कुल आय ₹26.8 लाख थी, ऐसा एफआईआर में आरोप लगाया गया है। प्राथमिकी के अनुसार, शोहे ने भारतीय स्टेट बैंक से ₹64.9 लाख का आवास ऋण लिया था, जिसमें से वह पहले ही ₹21.79 लाख चुका चुके हैं। एफआईआर में दिए गए विवरण के अनुसार, उन्होंने कथित तौर पर निर्माण सामग्री पर लगभग ₹23.5 लाख खर्च किए हैं और लगभग ₹93,000 के प्रीमियम वाली एक बीमा पॉलिसी खरीदी है।
कैसे हुआ खुलासा?
CBI को इस पूरे मामले की जानकारी उस समय मिली जब आयकर विभाग को अजय कुमार सिंह के आय और निवेश में असमानता दिखी। इसके बाद CBI ने अपनी स्वतंत्र जांच शुरू की और बैंक खातों, शेयर ट्रेडिंग रिकॉर्ड और आय विवरणों का विश्लेषण किया।
CBI की एफआईआर में क्या-क्या कहा गया है?
एफआईआर के अनुसार:
- अजय सिंह ने अपने और अपने रिश्तेदारों के नाम पर कई डीमैट खाते खुलवाए।
- इन खातों में बड़ी मात्रा में नकद जमा कर के, शेयर बाजार में ट्रेडिंग की गई।
- प्रारंभिक आकलन में ही लगभग ₹19.43 करोड़ के निवेश का पता चला।
- यह रकम उनकी कुल आय से करीब 47 गुना अधिक है।
अवैध आय के स्रोत की जांच
CBI यह पता लगाने में जुटी है कि यह पैसा कहां से आया। शुरुआती जांच में यह संदेह जताया गया है कि इसमें:
- रिश्वतखोरी,
- नकद लेनदेन,
- कालाधन को सफेद बनाने (money laundering),
- और अधिकारियों के साथ साठगांठ जैसे पहलू हो सकते हैं।
कौन-कौन आरोपी बनाए गए हैं?
CBI की प्राथमिकी में अजय कुमार सिंह के अलावा उसके परिवार के कुछ सदस्यों और कुछ निजी व्यक्तियों (ब्रोकर और सहायक) को भी आरोपी बनाया गया है। सभी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, IPC की धारा 120B और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
FCI की छवि पर असर
FCI (Food Corporation of India), एक बेहद महत्वपूर्ण सरकारी संस्था है जो देश की खाद्य सुरक्षा प्रणाली में अहम भूमिका निभाती है। ऐसे में एक कैशियर के इस तरह के भ्रष्टाचार में शामिल होने से संस्था की छवि को बड़ा नुकसान पहुंचा है।
सरकार की क्या प्रतिक्रिया है?
अब तक केंद्र सरकार या FCI की ओर से कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन CBI की जांच की निगरानी में यह मामला तेजी से आगे बढ़ रहा है। संभावना है कि FCI अपने आंतरिक विभागीय जांच की भी शुरुआत कर सकती है।
क्या हो सकता है आगे?
- यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो अजय कुमार सिंह को कई वर्षों की सजा, आर्थिक जुर्माना और संपत्ति जब्ति का सामना करना पड़ सकता है।
- CBI जांच में अगर यह साबित हो गया कि उसने अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर यह घोटाला किया, तो कई और सरकारी अधिकारी जांच के घेरे में आ सकते हैं।
- इस मामले से प्रेरणा लेकर सरकार अन्य विभागों में भी वित्तीय पारदर्शिता और निगरानी को बढ़ा सकती है।
यह मामला दिखाता है कि कैसे एक निचले स्तर का सरकारी कर्मचारी भी यदि भ्रष्ट मार्ग अपनाता है तो वह करोड़ों रुपये का अवैध साम्राज्य खड़ा कर सकता है। CBI की जांच और कानूनी कार्रवाई आने वाले दिनों में उदाहरण बन सकती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार किस हद तक सख्ती बरतने को तैयार है।